ये कैसी चली हवाएँ कन्हैया तेरे देश में
तेरी
तेरी
गैया भूखी मर गयी कंन्हैया तेरे देश में।
गावों में चोपाल नहीं है, मीठी बोली ताल नहीं है ।
चेहरे पर मुस्कान नहीं है कन्हैया तेरे देश में ।
दुनिया जैसे भाग रही है, चारों tअरफ आग लगी है।
आग लगी है पैसे की!
माँ की ममता, बहन का प्यार, सारे रिश्ते नाते छूटे कन्हैया तेरे देश में....
में ये सोचूं कहाँ आ गया, कैसी दुनिया कैसे लोग ?
सूर्य उगा हो, चाँद खिला हो, मुझको दीखता घोर अँधेरा
कोई भी अपना नहीं कन्हैया तेरे देश में ......
में आया था यहाँ ढूँढने प्यार, मुहब्बत और ख़ुलूस
मैंने देखा यहाँ सिर्फ है - झूठों और मक्कारों का जुलूस ।
मेरी नैया मजधार में डूबी कन्हैया तेरे देश में......
ये कैसी चली हवाएँ कन्हैया तेरे देश में,
तेरी गैया भूखी मर गयी कन्हैया तेरे देश में।
पवन कुमार
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